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शुक्रवार, 24 मार्च 2017

ढब्बूजी- 1

आज जो लोग अपनी उम्र के 5वें दशक में हैं, उन्हें "धर्मयुग' का "कार्टून कोना' जरुर याद होगा। नहीं, ये कतरन "धर्मयुग" के नहीं है। ("धर्मयुग" और "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" के जिन अंकों को मैंने बड़े चाव से सहेज कर रखा था, उन्हें विवाहोपरान्त रद्दी समझा गया- गलती मेरी ही है- हमने सहमति दे दी थी) खैर, दशकों बाद "सहारा समय" ने आबिद सुरती साहब की अमर रचना "ढब्बूजी" की शृँखला को दुबारा प्रकाशित किया था- ये कतरन उसी के हैं।
आशा है, आबिद सुरती साहब को कोई ऐतराज नहीं होगा इन कतरनों के प्रकाशन से... 



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